अमेरिका द्वारा भारत से आयातित कई उत्पादों पर 50% तक के टैरिफ (import duties) लगाए जाने से दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों में तनाव पैदा हो गया है।
इन निर्णयों से भारत के वस्त्र, रत्न-गहना, समुद्री उत्पाद, और चमड़ा उद्योग को खासा नुकसान हुआ है, जबकि सरकार अब राजनयिक स्तर पर समाधान तलाश रही है।
🔹 भारत को कितना नुकसान हुआ?
-
निर्यात में गिरावट:
अगस्त–सितंबर 2025 के दौरान भारत का अमेरिकी बाज़ार में निर्यात लगातार तीसरे महीने घटा। विशेष रूप से सीफूड, कपड़ा और जेम्स-एंड-ज्वेलरी सेक्टर पर सबसे ज्यादा असर देखा गया। -
रोजगार पर असर:
लेबर-इन्टेंसिव उद्योगों में उत्पादन घटने से हज़ारों श्रमिकों के रोजगार पर खतरा मंडरा रहा है। -
आर्थिक प्रभाव:
वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, यदि यह टैरिफ नीति अगले छह महीनों तक जारी रही तो भारत की जीडीपी वृद्धि दर पर 0.5% तक का असर पड़ सकता है।
🔹 जिम्मेदार कौन?
-
अमेरिकी नीति दिशा:
अमेरिका ने अपनी “रिसिप्रोकल टैरिफ़ पॉलिसी” के तहत यह निर्णय लिया — जिसमें कहा गया कि जो देश अमेरिका पर ऊँचे टैक्स लगाते हैं, उन्हें भी समान दरों का सामना करना होगा। -
भारत की रणनीतिक कमजोरी:
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने निर्यात विविधीकरण (export diversification) और नई व्यापारिक समझौतों पर पर्याप्त तेजी नहीं दिखाई, जिससे अमेरिकी बाजार पर निर्भरता बढ़ी रही। -
वैश्विक राजनीतिक असर:
रूस-यूक्रेन संघर्ष, चीन की सप्लाई चेन नीतियों और भारत की तेल खरीद जैसे मुद्दों ने अमेरिका की नीति दृष्टि को भारत की ओर कठोर बनाया है।
🔹 सरकार और उद्योग का रुख
भारत सरकार ने अमेरिका से औपचारिक बातचीत शुरू की है। विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय दोनों ने टैरिफ में राहत या आंशिक छूट के लिए संयुक्त वार्ता की पुष्टि की है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, प्रभावित उद्योगों के लिए एक सहायता पैकेज (relief package) और एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी स्कीम पर भी विचार चल रहा है।
वहीं, उद्योग संगठन FIEO और CII ने मांग की है कि सरकार WTO के तहत औपचारिक शिकायत दर्ज करे ताकि व्यापार असंतुलन का समाधान अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत हो सके।
🔹 आगे क्या होना चाहिए?
विशेषज्ञों के अनुसार भारत को अब तीन-स्तरीय रणनीति अपनानी चाहिए:
-
कूटनीतिक पुनर्संवाद: अमेरिका से उच्च-स्तरीय वार्ता द्वारा टैरिफ़ में क्रमिक कमी पर सहमति।
-
घरेलू राहत: प्रभावित सेक्टरों के लिए टैक्स राहत, निर्यात बीमा और वैकल्पिक बाज़ारों की खोज।
-
दीर्घकालिक सुधार: उद्योगों में गुणवत्ता, ब्रांडिंग और तकनीकी नवाचार को प्रोत्साहन ताकि भविष्य में कोई भी टैरिफ भारत के लिए निर्णायक झटका न बने।
🔹 भारत–अमेरिका संबंधों का संतुलन
हालांकि यह विवाद आर्थिक है, पर दोनों देश रणनीतिक साझेदार हैं — रक्षा, प्रौद्योगिकी, और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग जारी है।
राजनयिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि दोनों पक्ष “टकराव नहीं, समाधान के रास्ते” पर कायम रहें, तो यह विवाद भविष्य में और मजबूत साझेदारी का आधार बन सकता है।
🧭 संपादकीय टिप्पणी:
भारत और अमेरिका दोनों ही विश्व अर्थव्यवस्था में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। व्यापार विवाद अस्थायी हैं, लेकिन सहयोग की संभावनाएँ स्थायी।
भारत को अब आत्मनिर्भरता और नवाचार को गति देकर यह दिखाना होगा कि वह केवल एक आपूर्तिकर्ता नहीं, बल्कि वैश्विक मूल्य श्रृंखला (global value chain) का नेतृत्वकर्ता बनने की क्षमता रखता है।
