नई दिल्ली, 6 दिसंबर 2025 — रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने दो-दिवसीय भारत दौरे के बाद लौट तो गए, लेकिन उनके कदमों की गूँज अगले दिन भी दिल्ली की राजनीतिक हवा में तैरती रही। राजनयिक गलियारों से लेकर वैश्विक विश्लेषकों तक, हर कोई इस बात पर चर्चा करता रहा कि यह यात्रा महज़ औपचारिक कूटनीति थी या वैश्विक रणनीति के शतरंज में भारत-रूस की नई चाल।
यात्रा के दौरान भारत और रूस ने 2030 तक व्यापार को रिकॉर्ड स्तर तक ले जाने की व्यापक योजना पर सहमति जताई। ऊर्जा, उर्वरक, रक्षा तकनीक और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया गया। भारत ने स्पष्ट संकेत दिया कि उसकी विदेश नीति किसी एक ध्रुव के दबाव में नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर चलेगी।
दूसरी ओर, यह यात्रा रूस के लिए भी जीवनरेखा जैसी रही—वैश्विक प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक दबावों के बीच पुतिन के लिए भारत जैसे स्थिर और भरोसेमंद साझेदार का साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक बड़ा संदेश है।
पर कहानी यहाँ ही खत्म नहीं होती। पुतिन के जाते ही पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका में हलचल बढ़ गई। वॉशिंगटन ने एक बार फिर यह उम्मीद जताई कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों पर “पुनर्विचार” करे। विश्लेषकों ने इसे अमेरिका की बढ़ती बेचैनी और भारत की बढ़ती रणनीतिक स्वतंत्रता का मिश्रित संकेत बताया।
हालाँकि, कुछ विशेषज्ञों ने भारत-रूस व्यापार में जारी असंतुलन और रूस से अत्यधिक ऊर्जा निर्भरता पर भी सवाल उठाए। उनका मत था कि मित्रता की चमक के पीछे आर्थिक समीकरणों की सख्त हकीकत छिपी हुई है—जो भारत को पश्चिमी साझेदारों की आलोचना के बीच एक कठिन संतुलन साधने पर मजबूर करती है।
वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो पुतिन की यह यात्रा रूस की उस रणनीति का हिस्सा थी, जिसके जरिए वह एशिया में अपनी उपस्थिति मजबूत करने और पश्चिमी दबाव को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। वहीं भारत ने यह दिखाया कि चीन की बढ़ती आक्रामकता और वैश्विक खींचातानी के समय वह अनेक शक्तियों के बीच मित्रता और व्यावहारिक सहयोग दोनों बनाए रख सकता है।
एक तरह से कहा जाए, तो पुतिन का विमान भले उड़ गया हो—लेकिन भारत-रूस साझेदारी और इसके असर के सवाल 6 दिसंबर की सुबह भी उतने ही ताज़ा थे।
और हाँ—इस दौरे ने यह भी साबित किया कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दोस्ती हो या रणनीति… दोनों कभी-कभी कैमरे के फ्लैश जितनी चमकदार और उतनी ही क्षणिक लगती हैं।
