नई दिल्ली, 11 दिसंबर 2025 — वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय कर्ज के नए रिकॉर्ड स्तर को छू रही है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में सरकारी कर्ज लगभग 111 ट्रिलियन डॉलर के आसपास पहुँच चुका है, जो पहले कभी नहीं देखा गया था। आर्थिक अनिश्चितताओं, सामाजिक खर्चों में वृद्धि और महंगाई नियंत्रित करने के उपायों ने कई देशों की सरकारों को भारी उधारी लेने पर मजबूर किया है। इस वैश्विक परिदृश्य में कुछ देश ऐसे हैं जिन पर सरकारी कर्ज का बोझ सबसे ज्यादा है — और सूची में भारत भी शामिल है।
दुनिया के सबसे अधिक सरकारी कर्ज वाले 10 देशों में सबसे ऊपर अमेरिका है, जिसका सरकारी कर्ज लगभग 38 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया है। अमेरिका के बाद चीन और जापान का स्थान है; चीन का कर्ज करीब 18.6 ट्रिलियन डॉलर, जबकि जापान का कर्ज लगभग 9.8 ट्रिलियन डॉलर है। यूरोप में यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली और जर्मनी भी उच्च कर्ज वाले देशों की सूची में प्रमुखता से शामिल हैं। कनाडा और ब्राज़ील क्रमशः नौवें और दसवें स्थान पर हैं।
इस सूची में भारत सातवें स्थान पर है, जिसका सरकारी कर्ज लगभग 3.36 ट्रिलियन डॉलर बताया जाता है। हालांकि भारत का कुल कर्ज बड़ा है, लेकिन इसका एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा घरेलू आर्थिक प्रणाली के अंदर ही है, जिससे यह अन्य देशों की तुलना में अधिक स्थिर श्रेणी में आता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था की क्षमता और विकास दर इस कर्ज को संभालने में मदद करती है, लेकिन दीर्घकाल में कर्ज प्रबंधन एक चुनौती बना रहेगा।
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि कर्ज का बढ़ना हमेशा संकट का संकेत नहीं होता, क्योंकि सरकारें विकास परियोजनाओं, सामाजिक योजनाओं और अवसंरचना निर्माण में निवेश के लिए उधार लेती हैं। लेकिन किसी भी देश के लिए वास्तविक चुनौती यह होती है कि उसके कर्ज का बोझ उसकी GDP (सकल घरेलू उत्पाद) की तुलना में कितना बड़ा है। जापान, सूदान और ग्रीस जैसे देशों में कर्ज-to-GDP अनुपात अत्यधिक होने के कारण आर्थिक दबाव अधिक देखा जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर बढ़ती उधारी का असर आने वाले वर्षों में सरकारों की आर्थिक नीतियों, कर प्रणालियों और विकास योजनाओं पर स्पष्ट दिखेगा। दुनिया भर में वित्तीय संतुलन बनाए रखना देशों के लिए लगातार कठिन होता जा रहा है, और यह सवाल अब और गहरा हो गया है— कर्ज विकास का ईंधन है या भविष्य का बोझ?
