भारत सरकार ने प्रमुख कैब-एग्रीगेटर कंपनियों Ola, Uber और अन्य क्षेत्रीय प्लेटफ़ॉर्म्स को शो-कॉज नोटिस जारी किए हैं। यह कार्रवाई ड्राइवरों को स्वास्थ्य बीमा, न्यूनतम किराया भुगतान, और प्रशिक्षण कार्यक्रमों जैसी सुविधाएँ न देने के आरोपों के बाद की गई है।
मामले की पृष्ठभूमि
शहरी परिवहन विभाग और राज्य श्रम मंत्रालयों को हाल के महीनों में कई शहरों से ड्राइवरों की शिकायतें मिलीं।
इनमें कहा गया कि कंपनियाँ —
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सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम किराया संरचना का पालन नहीं कर रहीं,
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ड्राइवरों को बीमा और स्वास्थ्य कवरेज जैसी अनिवार्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करा रहीं,
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और नए ड्राइवरों के लिए सुरक्षा एवं ग्राहक सेवा प्रशिक्षण की कमी है।
सरकारी कार्रवाई
परिवहन मंत्रालय ने इन शिकायतों की जांच के बाद कंपनियों को नोटिस भेजकर पूछा है कि उन्होंने मोटर व्हीकल एग्रीगेटर गाइडलाइंस, 2020 का पालन क्यों नहीं किया।
कंपनियों से 15 दिनों के भीतर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
अधिकारियों का कहना है कि यदि जवाब संतोषजनक नहीं मिला, तो जुर्माना और लाइसेंस निलंबन तक की कार्रवाई की जा सकती है।
कंपनियों का पक्ष
Ola और Uber दोनों ने कहा है कि वे “सभी वैधानिक नियमों का पालन” कर रहे हैं और ड्राइवरों को बीमा, इंसेंटिव और डिजिटल प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ पहले से उपलब्ध हैं।
कंपनियों ने यह भी कहा कि वे “सरकारी दिशानिर्देशों के अनुरूप सुधारों” पर काम कर रही हैं और किसी भी जांच में पूरा सहयोग देंगी।
ड्राइवर संगठनों की प्रतिक्रिया
ड्राइवर यूनियनों का कहना है कि ऐप-आधारित सेवाओं में कमाई का असंतुलन, प्रोत्साहन योजनाओं की अस्पष्टता, और सुरक्षा बीमा की अनुपलब्धता ने श्रमिकों की स्थिति को कमजोर किया है।
कुछ संगठनों ने सरकार से मांग की है कि इन कंपनियों को “गिग वर्कर नीति” के तहत जवाबदेह बनाया जाए।
विश्लेषण: गिग इकॉनमी में जवाबदेही की परीक्षा
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला भारत में गिग इकॉनमी (Gig Economy) के नियमन का परीक्षण है।
कानूनी रूप से ये ड्राइवर कर्मचारी नहीं बल्कि स्वतंत्र ठेकेदार माने जाते हैं, जिससे कंपनियाँ कुछ दायित्वों से बच सकती हैं।
हालांकि, बढ़ती शिकायतों और सामाजिक सुरक्षा की माँग ने सरकार को कड़े नियमों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया है।
संपादकीय टिप्पणी:
डिजिटल अर्थव्यवस्था के इस युग में, सुविधा और सुरक्षा दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। ड्राइवरों की सामाजिक सुरक्षा और पारदर्शी भुगतान व्यवस्था सुनिश्चित करना केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है।
