
इंदौर, मध्यप्रदेश।
देश में देसी घी की मांग लगातार बढ़ रही है, खासकर उस घी की जो पारंपरिक तरीकों से बनाया गया हो और शुद्धता के मानकों पर खरा उतरे। ऐसे में मध्यप्रदेश के मालवा अंचल से तैयार किया जाने वाला मालवा देसी घी उपभोक्ताओं के बीच विशेष रूप से चर्चित हो रहा है। यह चर्चा केवल उत्पाद की गुणवत्ता तक सीमित नहीं, बल्कि इससे जुड़े सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं तक फैली हुई है।
पारंपरिक विधि, आधुनिक निगरानी
मालवा क्षेत्र के कुछ ग्रामीण इलाकों में आज भी पारंपरिक बिलौना विधि से देसी घी का निर्माण किया जा रहा है। इस विधि में पहले दूध से दही बनाया जाता है, फिर मथकर माखन निकाला जाता है और अंत में उसे धीमी आँच पर पकाकर घी तैयार किया जाता है। यह विधि मशीनों के मुकाबले अधिक समय लेती है लेकिन इसमें घी के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं।
घरेलू महिला समूहों की भागीदारी
सूत्रों के अनुसार, इस घी के निर्माण में कई स्व-सहायता महिला समूह शामिल हैं जो स्थानीय स्तर पर न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं, बल्कि पारंपरिक ज्ञान को भी जीवित रख रही हैं। इन महिलाओं को प्रशिक्षण देने और नियमित आय देने का कार्य एक गैर-लाभकारी संस्था के माध्यम से संचालित हो रहा है।
मूल्य, बिक्री और वितरण की पारदर्शिता
घी की कीमत बाजार के सामान्य दरों से मेल खाती है, परंतु इसकी खासियत यह है कि इसके मूल्य निर्धारण में दूध की लागत, श्रम, पैकेजिंग और डिलीवरी जैसी प्रत्येक प्रक्रिया को पारदर्शी रूप से सार्वजनिक किया जाता है। वितरण की प्रक्रिया पूरी तरह ट्रैक की जा सकती है और उपभोक्ता ऑनलाइन माध्यम से भी ऑर्डर कर सकते हैं।
खपत में बढ़ोतरी और उपभोक्ता अनुभव
स्थानीय व्यापारियों और ऑनलाइन आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक वर्ष में इस घी की माँग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उपभोक्ता समीक्षाओं में स्वाद, सुगंध और पाचन में सहायक होने की बातें सामने आई हैं। कुछ लोगों ने इसे आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से लाभकारी भी बताया है।
सांस्कृतिक और धार्मिक उपयोग
देसी घी का उपयोग भारतीय परंपराओं में विशेष स्थान रखता है – चाहे वह रसोई में हो, धार्मिक अनुष्ठानों में या फिर औषधीय प्रयोगों में। मालवा का घी विशेष रूप से उज्जैन जैसे तीर्थ क्षेत्रों में पूजा-पाठ के लिए भी माँगा जाता है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार, पारंपरिक तरीके से बने घी में ब्यूटिरिक एसिड, विटामिन A, D, E और K की मात्रा अधिक होती है, जो शरीर में सूजन को कम करने, पाचन सुधारने और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में सहायक है।
निष्कर्ष
मालवा देसी घी की लोकप्रियता केवल एक ब्रांड की सफलता नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था, परंपरा और गुणवत्ता के समन्वय की कहानी है। यह उदाहरण दर्शाता है कि जब स्थानीय संसाधनों का उपयोग जिम्मेदारी और पारदर्शिता से किया जाए, तो वह न केवल बाज़ार में अपनी जगह बनाते हैं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम भी बनते हैं।
यदि आप भी मालवा देसी घी को आज़माना चाहता है, तो इसे मालवा देसी घी की आधिकारिक वेबसाइट www.malwaghee.com पर जाकर ऑर्डर किया जा सकता है।